स्त्रीवादी कहानी एवं उपन्यासों में स्त्री विमर्श
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 6)Publication Date: 2021-06-17
Authors : गीता यादव; चन्दा बैन;
Page : 41-46
Keywords : स्त्रीवादी कहानी; उपन्यास; असमानता; पितृसत्तात्मक व्यवस्था; स्त्री विमर्श;
Abstract
‘आरंभिक स्त्री लेखन मूलतः जीवन के साथ गहराई से जुड़ा है। यह उन्हीं विषयों और मूल्यों पर केन्द्रित है जिनकी उपस्थिति स्त्री जगत के इर्दगिर्द है। परिवेश और अनुभव के विस्तार के साथ ही कहानियों का ये लेखन क्रमशः पुष्ट और समृद्ध होता गया।‘ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नारी जागरण और स्त्रीशिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के फलस्वरूप कहानी के क्षेत्र में महिला रचनाकारों की एक सशक्त पीढ़ी का उदय हुआ। जिसमें महिला कहानीकारों के द्वारा नारी चेतना को भरपूर स्थान मिला। यही कारण है कि छठे दशक के साहित्य में विविधता और गहरी मानसिक बेचैनी लेकर कथा साहित्य के क्षेत्र में पूरी तन्मयता के साथ एक पूरी पीढ़ी प्रवेश करती है जिनका लेखन लम्बे समय तक चलता रहा। इन लेखिकाओं में शिवानी, कृष्णा सोबती, मन्नू भण्डारी, उषा प्रियंवदा, शशिप्रभा शास्त्री और अन्य अनेक नाम प्रमुख हैं। निश्चित रूप से महिला सशक्तीकरण के समानान्तर स्त्री विमर्श भी लगभग तीन दशकों से हर क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है, साहित्य भी इससे अछूता नहीं है, कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी आदि में स्त्री-विमर्श एक वैचारिक क्रान्ति के रूप में बिल्कुल नये संस्करण के रूप में उपस्थित है जिसमें स्त्री-विमर्श के विभिन्न आयामों को देखने का प्रयास किया गया है।
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Last modified: 2021-06-19 16:52:06