लोक साहित्य : दलित आदिवासी लोकावृत्त या लोकाख्यान
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 6)Publication Date: 2021-06-17
Authors : मुकेश मानस;
Page : 53-56
Keywords : लोक साहित्य; अभिजनवादी शिष्ट साहित्य्; लोक; दलित-आदिवासी; निम्नवर्गीय श्रमिक वर्ग;
Abstract
लोक साहित्य एक स्थापित साहित्य है और उसकी परिभाषा और स्वरूप लगभग निश्चित किये जा चुके हैं। लेकिन दलित-आदिवासी साहित्य और आलोचना ने इस पर प्रश्न चिह्न लगाकर इसके पुनर्विश्लेषण और पुनर्मूल्यांकन के सवाल को आलोचना के केन्द्र में ला दिया है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठाया गया कि इस लोक साहित्य का लोक कौन है? इस बारे में अभिजनवादी समाजशास्त्री और आलोचक एकमत हैं लेकिन दलित आदिवासी और पिछडे समुदायों के चिंतक इस बारे में अलग और भिन्न राय रखते हैं। यह शोधपत्र स्थापित करता है कि लोक साहित्य का लोक दलित-आदिवासी और निम्नवर्गीय समुदाय है। यह लोक साहित्य इन्हीं समुदायों का सृजन है और उनके बीच मौजूद लोक गीत और लोक कथाओं की सामूहिक अभिव्यक्ति है।
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Last modified: 2021-06-19 16:56:49