मेधा पाटकर और विस्थापितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 2)Publication Date: 2021-02-17
Authors : औरजीना मैरी लाकाडोंग;
Page : 53-60
Keywords : विकास की संकल्पना; बुनियादी-अधिकार; जीवन-मूल्य; जल-नियोजन; आदिवासी; छूआछूत।;
Abstract
'नर्मदा बचाओ आंदोलन' पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और बोला गया है। लेकिन इस शोध-पत्र के माध्यम से मैं जिस मुख्य तथ्य को रेखांकित करना चाहती हूँ वह है कि इस आंदोलन के फलस्वरूप नर्मदा घाटी में आए सामाजिक-राजनीतिक बदलाव- शिक्षा, महिलाओं की स्थिति, समाज में मौजूद कठोर जातीय दिवारों का गिरना, राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजगता और भ्रष्ट नेता और सरकारी अफसरों का विरोध। अगर नर्मदा बचाओं आंदोलन या मेधा पाटकर नहीं होती तो राजनीतिक पार्टिया लोगों को बहकाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करती। शायद कुछ लोगों को मुआवज़ा भी मिल जाता पर अधिकांश लोग अव्यवस्था में खो जाते या छूट जाते,जैसे बारगी और हरसौद गाँवों के लोगों के साथ हुआ। अगर ये संघर्ष नहीं होता तो 1990-91 तक बाँध बन गया होता और लोग कुछ नहीं कर पाते।
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Last modified: 2021-06-22 00:05:20