वृन्दावन लाल वर्मा के उपन्यास ‘झाँसी की रानी’ में स्त्री चेतना
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 2)Publication Date: 2021-02-17
Authors : शीतल कुमारी;
Page : 84-88
Keywords : नारी विमर्श; अस्मिता; स्वराज्य; समानता; पितृसत्तात्मक; स्वाभिमान।;
Abstract
स्त्री के प्रति पितृसत्तात्मक समाज का रवैया निश्चित मानदंडों और आदर्शों से संचालित होता रहा है जिसमें स्त्री की भूमिका पहले से तय कर दी जाती है। धर्म, वर्ण, जाति और वर्ग के स्तर पर स्त्री को दोयम दर्जे का प्राणी समझा जाता है। स्त्री को उस आदर्श आचरण संहिता के अनुसार साथ जीना होता है जिसका निर्धारण सदियों से पुरुषों ने अपने पास रखा है। ऐसे में वृन्दावन लाल वर्मा का ऐतिहासिक उपन्यास ‘झाँसी की रानी' आज भी उतना ही प्रासंगिक जान पड़ता है जितना इतिहास में था। रानी लक्ष्मीबाई ने जिस स्त्री चेतना को प्रस्तुत किया उसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि इससे स्त्रियों में उस असीमित शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे स्त्रियाँ अपने जीवन से जुड़े हर फैसले को स्वयं ले सकती हैं।
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Last modified: 2021-06-22 00:11:47