राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप और हिन्दी पत्रकारिता
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.3, No. 12)Publication Date: 2020-12-21
Authors : जयप्रकाश मिश्र;
Page : 63-71
Keywords : राष्ट्रवाद; स्वतंत्रता संग्राम; किसान; औपनिवेशिक भारत; कांग्रेस;
Abstract
पराधीन भारत में ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज पर प्रभुत्व बनाये रखने के लिए देश की आत्मनिर्भर ग्राम व्यवस्था में घुसपैठ की। इसके परिणाम स्वरूप किसान-ग्राम समुदाय के लिए उत्पादन न करके मंडी के लिए उत्पादन करने लगा। वह अपने गाँव के लिए नहीं बल्कि देश-दुनिया की मंडी के लिए उत्पादन करने लगा। राष्टीय आन्दोलन की पृष्ठभूमि के निर्माण में रेल व कपड़ा उद्योग का बहुत बड़ा हाथ रहा है। इन उद्योगों के विकास के पीछे ब्रिटिश शासकों का हित छुपा था। 19वीं शती को भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के उद्भव और विकास की शती की संज्ञा दी जा सकती है। इसी शताब्दी में सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन चला, 1857 का संग्राम हुआ और कांग्रेस की स्थापना हुई। सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन यहां की राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों से अलग नहीं था बल्कि परवर्ती काल में यहां के राजनैतिक आन्दोलन को तेज करने का यह सफल अस्त्र बना।राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस की भूमिका का प्रबल पक्ष ब्रिटिश शोषण के खिलाफ हाथ उठाना था तो निर्बल पक्ष भारतीय जमींदारों के पक्ष में हाथ गिराना था। भारत में पहला भारतीय पत्र एक अँगरेज के सम्पादकत्व में 29 जनवरी 1780 ई. में प्रकाशित हुआ। जेम्स अगस्टस हिक्की द्वारा सम्पादित इस पत्र का नाम था ‘हिक्की बंगाल गजट' अथवा ‘कलकत्ता जेनरल अडवरटाइजर'। ‘इण्डिया गैजेट' नाम का दूसरा पत्र नवम्बर 1780 में कलकत्ते से ही निकला। तीसरा पत्र कैलकटा गैजेट फरवरी 1784 में निकला। परंतु राष्ट्रीय पत्रकारिता का प्रारंभ संवाद कौमुदी (1821) नामक बांग्ला पत्र से हुआ।
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Last modified: 2021-06-23 17:18:23