आत्मनिरीक्षण एवं सशक्तिकरण: यम नियम के परिप्रेक्ष्य में
Journal: International Education and Research Journal (Vol.10, No. 6)Publication Date: 2024-06-15
Authors : डॉ. मंजू शुक्ला;
Page : 108-110
Keywords : यम; नियम; चेतना; सुविधा; मूल्य; आत्म-निरीक्षण;
Abstract
मनुष्य इस सृष्टि विकास के क्रम में सर्वोत्कृष्ट कृति है शारीरिक दृष्टि से भी एवं मानसिक दृष्टि से भी। शारीरिक संरचना की दृष्टि से जहां उसकी रीढ़ उर्ध्वमुखी हो सकी ताकि उसमें बहने वाली प्राणिक उर्जा (चेतना) भी उर्ध्वगामी हो सके।
वहीं मानसिक रूप से मनस या विचार करने की क्षमता एवं उसको क्रियान्वित करने की क्षमता का विकास हुआ। ओशो कहते हैं कि हम मनुष्य इसलिये ही बन सके क्योंकि हमारी रीढ़ आड़ी (-) न होकर खड़ी (। ) हो गई। सोचने और क्रियान्वित करने की क्षमता के कारण हमने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत विकास किया जिसका उद्देश्य मानव जीवन को सरल और आंनददायक बनाने के साथ-साथ ब्रम्हांडीय घटनाओं को समझना है वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम सुविधा सम्पन्न तो हुये पर शांति और स्थिरता कहीं दिखाई नही देती। क्योंकि मानवीय अस्तित्व, उसके चेतना विकास एवं नैतिक विकास के लिये आवश्यक प्रयास नही किये गये। हमारी भारतीय संस्कृति विशेषकर योग संस्कृति मानवीय व्यवहार, स्वस्थ एवं सुखी जीवन के लक्ष्य के साथ साथ मानव चेतना के विकास का अद्भूत मार्ग भी प्रदान करती है। यदि हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी और चेतना विकास पर एक साथ ध्यान केंद्रित करें तो हम निश्चित रूप से एक सुखी और समृद्ध जीवन प्राप्त कर सकते हैं।
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Last modified: 2024-09-16 20:41:07