वैदिक चिन्तन में सामाजिक जीवन की अवधारणाएँ
Journal: Drashta Research Journal (Vol.1, No. 03)Publication Date: 2012.08.15
Authors : डाॅ॰ साहिब सिंह;
Page : 55-62
Keywords : वेद; ऋत; स्तुति; वर्ण-व्यवस्था; विद्या; संस्कृति;
Abstract
वेद धर्म का मेरुदण्ड है । आचार्य मनु के अनुसार ”वेदोऽखिलो धर्ममूलम्“ अर्थात् विश्व के सभी धर्मों का आदि स्रोत ही वेद है । संसार की समस्त ज्ञान की धाराएँ वेदों से ही निःसश्त हैं । वेदों में जीव-मात्र के कल्याण की भावना निहित है । भारत की भूतपूर्व राष्ट्रपति एवं विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक डॉ राधाकृष्णन ने ‘इण्डियन फिलासफी' नामक अपनी कृति में लिखा है, ”किसी भी भारतीय विचारधारा की सही व्याख्या के लिए ऋग्वेद् के सूक्तों का अध्ययन अनिवार्य रूप से आवश्यक है । सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक आदि दृष्टियों से देखने पर वैदिक चिन्तन का विपुल महत्त्व दृष्टिगोचर होता है, परन्तु प्रस्तुत शोध-पत्र में वैदिक चिन्तन में निहित सामाजिक जीवन की अवधारणाओं का अध्ययन अपेक्षित है ।
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Last modified: 2025-04-12 22:31:01