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भारत म ें प ेयजल प्रद ुषण - मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुना ैति

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 1-5

Keywords : भारत म ें प ेयजल प्रद ुषण - मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुना ैति;

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Abstract

पृथ्वी का 2/3 भू-भाग जल स े घिरा ह ुआ है। पृथ्वी पर जल की मात्रा 1.4 मिलियन क्यूबिक मीटर आंकी गई है। जिसका 97.57ः भाग महासागरों में होन े के कारण खारा जल है। लगभग 36 क्यूबिक मीटर स्वच्छ जल जा े पीन े व उपयोग म ें ल ेन े योग्य है उसम ें स े लगभग 28 मिलियन क्यूबिक मीटर जल बर्फ के रूप म ें ध्रुवों पर जमा ह ै। हमार े वास्तविक उपया ेग के लिये उपलब्ध लगभग 8 मिलियन क्यूबिक मीटर जल पर द ूनिया के लगभग 6 अरब से ज्यादा की आबादी निर्भर है।'1 पीन े योग्य जल के स्त्रोत के रूप में नदियाँ, तालाब, कुए व नलकुप उपलब्ध है। और इनके जल का उपयोग भी हम उसी स्थिति म ें कर सकत े है। जब यह जल प्रद ुषण से मुक्त हो। शुध्द और इसके स्त्रा ेत सीमित है। शुध्द जल में अवांछित रसायनों व पदार्थो के मिलन े से अमृत त ुल्य जल जानलेवा भी हो सकता है। जल प्रद ुषण-भौतिक, रसायनिक अथवा ज ैवकीय ग ुणों में इस तरह परिवर्तन हा े जाये जिससे घर ेलू, व्यवसायिक, औद्योगिक क ृषि कार्यो ं म ें उपया ेग न किया जा सके या जिसका मानव स्वास्थ, प ेड ़-पौधों तथा जीव-जन्त ुआ ें पर उसका विपरीत प्रभाव पड ़े। उससे जल प्रद ुषण की स्थिति बनती है। विष्व स्वास्थ संगठन के अन ुसार 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण प ्रद ूषित प ेयजल है। वर्त मान म ें 1600 जलीय प्रजातियाँ जल प ्रद ूषण के कारण लुप्त हा ेन े के कगार पर है।

Last modified: 2017-09-25 19:42:48