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काव्यचित्र एवं चित्रकाव्य

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.7, No. 11)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 207-215

Keywords : काव्यचित्र; चित्रकाव्य;

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Abstract

कला और साहित्य मानव की रचना प्रक्रिया से प्राप्त कलात्मक निरूपण है। जिस तरह मानव के मानस में संवेदना, अनुभूति से प्राप्त ज्ञान संचित रहता है, जो उसे नई अनुभूतियों को समझने में सहायक सिद्‌ध होता है उसी तरह समूची जाति का अतीत उसके साहित्य व कला में सुरक्षित रहते हैं। अभिव्यक्ति का प्रथम माध्यम चित्रकला को माना गया है। आदिकालीन मानव द्वारा अपनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति चित्रों के माध्यम से की थी, तत्पश्चात्‌ भाषा के विकास, लिपि की खोज एवं शब्द सृजन से काव्यकला का विकास हुआ। विद्वानों का मत है कि चित्रों से भाषा विकसित हुई। चित्रकला का माध्यम रेखा व रंग तो काव्य का माध्यम शब्द है। काव्य रचना जिस वर्ण व अक्षरों में अंकित की जाती है उसका मूल चित्राक्षर है। ''जो भाव मन में उठते हैं, काव्य उन्हें शब्दों के माध्यम से निश्चित अर्थ और चित्रकला उन्हें मूर्त अभिव्यक्ति देती है इसीलिए काव्य और चित्रकला में समानता है अतः कवि व चित्रकार एक हैं। वर्ण, छन्दमय अभिव्यक्ति काव्य है और रेखा रंग की साधना है चित्र। साधारणतया चित्र को रेखाबद्‌ध कविता और काव्य को शब्दबद्‌ध चित्र कहा है। भाव लावण्य योजना के सहारे ही हम कविता व चित्र को एक भूमि पर उतार सकते हैं। भावों की अभिव्यक्ति चित्रों में भी रहती है तथा काव्य में भी।''1

Last modified: 2020-01-08 16:55:08