ज़मीनी लोकतंत्र की प्रहरी इरोम शर्मिला चानू
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 3)Publication Date: 2021-03-18
Authors : प्रदीप कुमार;
Page : 10-16
Keywords : सामाजिक साहचर्य; सेंडविच नागरिक; नैतिक क्षतिपूर्ति; ज़मीनी लोकतंत्र; जनजातीय अस्मिता।;
Abstract
राज्य के किसी कानून का असंवेदनशील हो जाना नागरिक आंदोलन के लिए उर्वरक भूमि तैय्यार करता है। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों और जम्मू कश्मीर में लागू आफ़स्पा (Armed Forces Special Power Act) भी कुछ इसी श्रेणी में आता है। मणिपुर में सैनिकों द्वारा कुछ आम नागरिकों को मौत के घाट उतार देने वाली घटना से न केवल मणिपुर में आंदोलन हुआ, बल्कि दिल्ली की संघीय सरकार को भी इसने अपनी चपेट में ले लिया। और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राज्य सुरक्षा के नाम पर बने इस कठोर कानून बनाम मानवाधिकार सुरक्षा पर एक तीखी बहस छिड़ गई। ये बहस कोई राज्य बनाम राज्य की नहीं है, बल्कि राज्य की सत्ता बनाम नागरिक अधिकारों (मानवाधिकार आंदोलन) के बीच हैं जहां इरोम शर्मिला चानु अचानक एक मानवाधिकार आंदोलनकर्ता के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभरती है और राज्य को संवेदनशील मानवतावादी कानून बनाने और उसे जनकल्याण की भावना से लागू करने की हिदायत देती हैं और शान्ति दूत की भूमिका निभाती है।
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Last modified: 2021-06-21 01:30:17