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‘‘किशनगढ़ श्©ली का पर्यावरण-प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक परम्परा’’

Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)

Publication Date:

Authors : ;

Page : 1-3

Keywords : ‘‘किशनगढ़ श्©ली का पर्यावरण-प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक परम्परा’’;

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Abstract

‘‘राजस्थान की किशनगढ ़ श्©ली के चित्र्ा प्रकृति क¨ संरक्षित करके पर्यावरण जागरुकता क¨ आज के परिव ेश में प्रदर्शित करत े हैं। चित्र्ा¨ ं में वनस्पति, जल, वायु तीन¨ं पर्यावरणीय घटक प्रचुर मात्र्ाा में चित्र्ाित ह ैं। पर्यावरण में प्रकृति चित्र्ाण के साथ अध्यात्म दर्शन की सांस्कृतिक परम्परा क¨ ज¨ड ़ा गया ह ै। हरियालीमय सुरम्य वातावरण चित्र्ा¨ं मंे प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक थाती पर्यावरण प्रद ूषित ह¨न े से बचान े का सन्द ेश जन-जन तक पहुँचाती प्रतीत ह¨ती है, ज¨ एक सकारात्मक प्रयास है। पर्यावरण का तात्पर्य समस्त ब्रह्माण्ड के न ैतिक एव ं जैविक व्यवस्था से ह ै, जिसके अंतर्गत समस्त जीवधारी ह¨त े ह ैं। पर्यावरण में जीवधारी रहत े हैं, बढ ़त े हैं अ©र पनपत े हैं; अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तिय¨ं क¨ विकसित करत े हैं। मन ुष्य पर्यावरण का ही एक भाग ह ै, उससे पृथक उसका क¨ई भी अस्तित्व नहीं है। वायु, जल, भ ूमि, वनस्पति, पेड ़-प©ध्¨, पशु, मानव सब मिलाकर पर्यावरण बनात े हैं। ‘‘प्रकृति मंे हमें ज¨ कुछ दिखाई द ेता ह ै- वायु, जल, मिट्टी, वनस्पति तथा प्राणी सभी सम्मिलित रूप से पर्यावरण की रचना करत े है ं। अतः पारिस्थितिकी पर्यावरण अध्ययन का एक विज्ञान है।1आधुनिक काल में जब से हमन े आध्यात्मिक मान्यताअ¨ं का त्याग किया है तथा विज्ञान अ©र प्र©द्य¨गिकी क¨ ही मानव प्रगति का कारण मान लिया अ©र प्राकृतिक संसाधन¨ं का भरप ूर द¨हन करना प्रार ंभ किया तभी हमारा पर्यावरण जीवन के लिए संकट प ूर्ण ह¨ गया है।2 विकास स े विनाश का यह मंजर केवल प्रकृति के अत्यधिक द¨हन के कारण हुआ ह ै।

Last modified: 2017-09-25 18:47:23