समाजिक समस्याऐं व पर्यावरण
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : रामवीर सिंह;
Page : 1-3
Keywords : समाजिक समस्याऐं व पर्यावरण;
Abstract
सामाजिक पर्या वरण ;ठपव ैवबपंस म्दअपतवदउमदजद्ध में परिवर्ति त हो रहा है फलस्वरूप पर्या वरण संघटों क े मौलिक गुणा ें म ें परिर्वतन हो रहा है। स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरणीय परीक्षण आवश्यक ह ै, विकास क े संचालन के लिए नत्य व अनत्य संसाधनों का े उपयोग द ुर्लभ एव ं अमूल्य संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता न े पर्यावरण प ्रबन्धन को अव्यन्त महत्वप ूर्ण बना दिया है। 1 पर्यावरण के प ्रति सचेत संवद ेनशील तथा जागरूक बनाया जाना भी ब ेहद जरूरी है, लोगो को यह समझाया जाना आवश्यक है कि आखिर हमारा पर्या वरण या परिस्थितिक त ंत्र क ैसे प्राकृतिक आपदाआ ें से हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करता है तथा पर्यावरण का संरक्षण व सवर्द्धन तथा उसको वैश्विक स्तर पर मानवीय हस्तक्षेप क े कारण जिस प्रकार पर्यावरण संत ुलन तथा पारिस्थितिक को लगातार क्षति पहुचायी गयी ह ै, उससे न सिर्फ मौसम, जलवाय ु तथा अन्य प ्रकार की भौगोलिक परिस्थितियों में अप्रत्यशित परिवर्त न द ेखन े को मिले बल्कि प्राकृतिक आपदाओं की दर तथा पर्या वरण का े र्हुइ क्षति के लिए परस्पर एक-दूसर े पर दोषारा ेपण करन े क े वजाय विश्व के सभी द ेशा ें को आपस में परस्पर समन्वय सम्बन्ध स्थापित करके इसकी भरर्पाइ क े लिए प्रयास करन े चाहिए। हमार लिए विकास जरूरी है मगर पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्द्धन उससे कही अधिक जरूरी है। 2
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Last modified: 2017-09-27 18:54:32