कला, कलाकार और संवेदनायें
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.7, No. 11)Publication Date: 2019-11-30
Authors : डा सुनीता गुप्ता;
Page : 277-280
Keywords : कला; संवेदनायें; कलाकार;
Abstract
सौन्दर्य, प्रेम, संवेदना, अनुभूति और चेतना आदि सामाजिक संस्कार है। विकासशील चैतन्य प्राणी के निरन्तर विकसित हाने से इनका भी विकास हुआ मानव,वानर और वनमनुष्य की श्रेणी से ऊपर उठकर महामानव बन गया। उसका मन, मस्तिष्क, सौन्दर्य चेतना और प्रेम निरन्तर उसकी बुद्धि के बल पर विकसित हुए और आज भी हो रहे हैं। मनुष्य को समाज की सदैव आवश्यकता रही और सामाजिकता की आकांक्षा के कारण ही उसमें सौन्दर्य प्रिय और प्रेम की वृत्ति होती है। चार्ल्स डार्विन ने मानवेतर प्राणियों में भी सौन्दर्य चेतना को स्वीकार किया है लेकिन उनमें सौन्दर्य चेतना केवल यौन-संवेदना तक सीमित है। मनुष्य ने सांस्कृतिकता एवं सामाजिकता के कारण सौन्दर्य चेतना को इन्द्रियों से नियन्त्रित धरातल दिया है। किरण संवेदना की दृष्टि से जीव दो प्रकार के होते हैं-एक वे जिन्हें सूर्य का प्रकाश आकर्षित करता है जैसे पतंगा चातक आदि दूसरे वे जिन्हें सूर्य का प्रकाश विकर्षक लगता है जैसे उल्लू, चाली आदि। यह भिन्नता प्राणी की शरीर रचना और इन्द्रियों के भिन्न प्रकार से निर्मित के कारण होती है। इसी भिन्नता के आधार पर प्राणियों की सौन्दर्य चेतना के अन्य आयाम और पक्ष निर्भर करते हैं। मनुष्य में नेत्र-मस्तिष्क सम्बन्ध की विशेषता के कारण सौन्दर्य के प्रति सोच में अन्तर आ जाता है। मस्तिष्क सौन्दर्य के प्रति जितना अधिक सजग, सक्रिय एवं समर्थ होगा, उसकी सौन्दर्य-चेतना उतनी ही तेज एवं प्रखर होती है। महाकवि बिहारी ने इसे भेद माना है-
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Last modified: 2020-01-09 16:58:34