फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यासों में चित्रित लोकजीवन
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 6)Publication Date: 2021-06-17
Authors : अभिषेक सौरभ;
Page : 57-61
Keywords : लोकजीवन; आंचलिकता; मैला आंचल; ग्राम्यता; किसान चेतना;
Abstract
फणीश्वरनाथ रेणु की लेखकीय या वैयक्तिक दृष्टि से उत्तर-पूर्व भारत का ‘लोकजीवन' कभी भी ओझल नहीं हो पाया। रेणु अपने सम्पूर्ण साहित्य में लोक के पक्ष में खड़े दिखाई पड़ते हैं। उनका रचा समूचा साहित्य लोकजीवन की गाथाओं का प्रामाणिक दस्तावेज है, जिसमें एक ओर पीड़ित और शोषित जनता है, हाशिये का समाज है तो दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं, जो अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए मानवता को कलंकित करने तक से भी नहीं चूकते। फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास इसी शोषित, उत्पीड़ित और वंचित जन-समुदाय के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक समस्याओं की कहानी प्रस्तुत करते हैं। रेणु के कथा-साहित्य में अपने समय और समाज की धड़कन हमें सुनाई देती है। साथ ही उसमें अतीत और भविष्य की अन्तर्ध्वनियाँ भी हैं। रेणु का कथा-शिल्प लोक और शास्त्र के द्वंद्व से निर्मित है। उसमें नवाचार है। खड़ी बोली हिंदी में लोक-जीवन और उसकी भाषा की अद्वितीय अभिव्यक्ति है। भाव-प्रवणता, रसमयता, संगीतात्मकता, प्रकृति और मनुष्य की रंग-बिरंगी चित्र-छवियाँ रेणु के कथा-साहित्य को अद्वितीय बनाती हैं।
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Last modified: 2021-06-19 16:58:29