समकालीन हिन्दी कहानी म नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण
Journal: Swadeshi International Research Journal of Hindi Literature (Vol.1, No. 2)Publication Date: 2013-09-15
Abstract
समाज नारी को हमेशा अपने परम्परागत ढांचा में ही रखना चाहता है। चाहे घर में मां, पत्नी, बहु, बेटी हो या समाज की आम नारी, हर एक के लिए एक सीमा निर्धरित की गई है। जो नियम निर्धरित किए गए हैं अगर कोई उनसे बाहर निकलने की कोशिश करेगी तो वह सामाजिक बहिष्कार की भागी होगी। एक पति ही नहीं बेटा भी बर्दाशत नहीं कर सकता कि उसकी मां या बहन का अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व हो। प्रत्येक रिश्ता की आकांक्षाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी नारी को उठानी चाहिए, यह मान्यता एक तरफा है और अब इसम बदलाव आयेगे, ऐसा आशावाद समकालीन कहानीकार जगाता है।
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Last modified: 2025-04-13 00:18:58