वानिकी एवं पर्या वरण
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.3, No. 9)Publication Date: 2015-09-29
Authors : भारती खर े; अंजलि कुमार;
Page : 1-3
Keywords : वानिकी एवं पर्या वरण;
Abstract
एक अरब स े ज्यादा जन सैलाब के साथ भारतीय पर्या वरण का े स ुरक्षित रखना एक कठिन कार्य ह ै वह भी जबकि हर व्यक्ति की आवश्यकताएॅ ं, साधन, शिक्षा एव ं जागरूकता के स्तर में असमान्य अंतर परिलक्षित होता है। संत ुलित पर्या वरण के बिना स्वस्थ जीवन की कल्पना करना मात्र एक कल्पना ही है। पर्यावरण स े खिलवाड ़ के परिणाम हम र्कइ रूप में वर्त मान में द ेख रहे हैं एव ं भोग रहे ह ैं। पर्यावरण विज्ञान आज के समय क े अन ुसार एक अनिवार्य विषय ह ै। यह सिर्फ हमारी ही नहीं अपित ु व ैश्विक समस्या ह ै। वर्त मान पर्यावरणीय अस ंत ुलन का े द ेखत े हुए इस विषय स े हर व्यक्ति का े जुड ़ना चाहिए एव ं जोड ़ना चाहिए। वानिकी एव ं पर्या वरण विज्ञान से प्राक ृतिक संसाधनों का सतत ् प्रब ंधन एव ं नई तथा कारगर तकनीकों के माध्यम से पर्यावरण का संरक्षण आ ैर स ुधार किया जा सकता है। मानव समाज न े विज्ञान एव ं अन्य क्षेत्रो ं में अभूतप ूर्व विकास किया ह ै पर ंत ु इस विकास के चलत े उसन े प्राकृतिक संसाधना ें का क्रूरता क े साथ उपयोग किया है या यह कहा जाये कि द ुरूपयोग किया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इससे हमार े प्राकृतिक संसाधनों के साथ पर्यावरण को भी न ुकसान हुआ है और इसक े परिणाम द ेखन े के लिए हमें कही ं द ूर जान े की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति के साथ सतत ् की जा रही बर्बरता के कारण आज हम बढ ़त े बंजर इलाके, कम उपजाऊ भूमि, प्रद ूषण से भर े हमार े नगर आ ैर बाढ ़ तथा सूखे की क्रूरता झ ेलत े मानव समाज एव ं क्षेत्र हमार े समकक्ष ही उपलब्ध ह ैं।
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Last modified: 2017-09-25 18:21:33