मध्यकालीन भारतीय लघु चित्रण शैलियों के चित्रों में कलात्मक हाशियों का अंकन एवं महत्व: एक अध्ययन
Journal: INTERNATIONAL JOURNAL OF RESEARCH -GRANTHAALAYAH (Vol.7, No. 11)Publication Date: 2019-11-30
Authors : डॉ. श्रीमती मंजुला निंगवाल;
Page : 297-300
Keywords : भारतीय; कलात्मक; अध्ययन;
Abstract
कला के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण यह भी है कि कोई भी अभिव्यक्ति या विचार कला की संज्ञा नहीं पा सकता, जब तक उसमें सौन्दर्य का योग न हो। कला और सौन्दर्य एक-दूसरे से अभिन्न रूप से संबद्ध होते हैं। हीगेल ने प्राकृतिक सौन्दय को ईश्वरीय सौन्दर्य का आभास माना और कहा है कि कला इसी आभास की पुनरावृत्ति है।
भारतीय इतिहास में मध्यकाल पुनरुत्थान का समय माना जाता है। मध्यकाल में सभी कलाओं की भरपूर उन्नति हुई। आपसी अर्न्तसंबंध स्थापित करते हुए कलाएँ उत्कृष्टता की चरम सीमा पर पहुँची। चित्रकला के क्षेत्र में लघु चित्रण शैली का उद्भव एवं विकास हुआ। पोपिट्स पौधे से निर्मित कागज का आविष्कार होने से लघु चित्रण शैली खूब पल्लवित और विकसित हुई। ये युग साहित्य सृजन, पोथी चित्रण और लघु चित्रण का युग रहा। मध्य युग के रीतिकाल में कलाकारों को राज्याश्रय और सम्मान मिला। रीतिकालीन कवियों ने श्रृंगार विषयक ग्रंथों की रचनाएँ की, जिसने चित्रकला की विषयवस्तु को सुन्दर स्वरूप प्रदान किया। वस्तुतः मध्य युग की लघु चित्रण शैलियों में प्रमुख रूप से राजस्थानी पहाड़ी और मुगल शैली के चित्र आते हैं। जो अपनी विशिष्टता कलात्मकता और सुन्दरता के कारण भारत में ही नहीं, वरन् विश्व भर में प्रसिद्ध है। इन चित्रों को भव्यता और सुन्दरता प्रदान करने के लिए विषय के अनुरूप आकारों और रंगों का मानवाकृतियों, पशु-पक्षियों और प्रकृति का सुन्दर कलात्मक संयोजन किया गया है। और साथ ही चित्र को सुन्दर रंगीन होशियों के बीच संजोया गया है।
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Last modified: 2020-01-09 17:02:34