लोककलाओं में प्रतिबिंबित लोकजीवन : आदी जनजाति कला- ‘लोकसंगीत’ के संदर्भ में
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.4, No. 6)Publication Date: 2021-06-17
Authors : ईङ परमे; ओकेन लेगो;
Page : 69-73
Keywords : आदी; मीरी; पोनुङ; कारपूङ-कारदूक; आबाङ।;
Abstract
लोककलाएँ किसी एक व्यक्ति की कला नहीं हैं पूरे जातीय समूह का है। लोक कलाएँ जातीय समूह से संबंधित है। अरुणाचल की आदी जनजाति की लोक कलाओं की अपनी अलग पहचान है। आदी जन कला कौशल क्षेत्र में किसी से कम नहीं है। आदी लोक कलाओं की अपनी विशेष शैली और पद्धति है। इनकी लोक कलाओं में मौलिकता के दर्शन होते हैं। इन कलाओं में आदी जनजाति की लोकजीवन, संस्कृति आदि छिपा रहता है,जो भिन्न कलाओं के माध्यम से परिलक्षित होता है । आदी कला कई रुपों में है जैसे- स्थापत्य कला, लौहशिल्प, हस्तशिल्प, कपड़ा रंगने की शिल्प और कताई, चटाई, संगीत और नृत्य कला आदि कलाएँ शामिल है।
आदी लोकसंगीत का इतिहास, उद्भव और विकास किस तरह हुआ यह जानना अत्यंत आवश्यक है। इसका अध्ययन विश्लेषण प्रस्तुत आलेख में किया जाएगा। किस प्रकार से आदी लोक कला आदी समाज की अस्मिता को आकार देता है और आदी संस्कृति का निर्माण करती आई है। इसका अध्ययन प्रस्तुत आलेख का मूल स्वर है। आज के यंत्र युग में सम्पूर्ण देश समकालीन और आधुनिक कलाओं-फोटोग्राफी, कम्पयूटर आर्ट, डिजिटल आर्ट आदि में अधिक रुचि लेने लगे हैं। तथाकथित मुख्यधारा का समाज आदी कलाओं से लगभग अपरिचित है ; स्थानीय लोग भी स्वयं इन कलाओं के प्रति उदासीन है। त्वरित विकास के इस दौर में इस बात की आशंका स्वाभाविक है कि निकट भविष्य में आदी जनजाति की अस्मिता जो आदी लोक कलाओं से संबंधित है, अपने मूल स्वरूप को खो देगी। अपनी अस्मिता को स्वयं आदी जनजाति को उभारना होगा।
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Last modified: 2021-06-19 17:03:16