राष्ट्र निर्माण : अतीत से भविष्य की यात्रा
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.3, No. 11)Publication Date: 2020-11-24
Authors : प्रशान्त वर्मा;
Page : 69-73
Keywords : चिति; धर्म; समाज दर्शन; मातृभूमि;
Abstract
सामान्यतः राष्ट्र व्यक्तियों का एक स्थिर समुदाय हैजो एक सामान्य भाषा, क्षेत्र, इतिहास,जातीयता या एक सामान्य संस्कृति के आधार पर बनता हैजो एकात्म मानव समूह की ओर इशारा करता है। जब हम किसी व्यक्ति के स्वरूप की बात करते है तो सिर्फ उसके शरीर की बात नहीं करते बल्कि उसकी आत्मा की भी बात करते है। जिस प्रकार इन दोनों में किसी एक की भी अनुपस्थिति होने की स्थिति में व्यक्ति का स्वरूप नष्ट हो जाता है ठीक इसी प्रकार राष्ट्र का भी एक स्वरूप होता है। जब एक मानव समुदाय के समक्ष एक लक्ष्य, विचार या आदर्श रहता है और वो समुदाय किसी भूमि विशेष को मातृ भाव से देखता है तो वह राष्ट्र कहलाता है। इनमें से अगर कोई एक तत्व भी अगर गायब होता है तो राष्ट्र सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा मात्र रह जायेगा।
व्यक्ति के समान ही राष्ट्र की भी आत्मा होती है, जिसे चिति कहा जाता है। चिति के होने के लिये कोई ऐतिहासिक कारण नहीं है, ये तो समाज के निर्माण के समय से ही अस्तित्व में रहती है। समाज के अनुसार क्या उचित है और क्या अनुचित, ये निर्धारित करने का कार्य वास्तविक रूप में चिति ही करती है। एक व्यक्ति किस प्रकार मानव समूह और सृष्टि के साथ सामंजस्य बनाता है, ये बात निर्धारित करती है समाज किस प्रकार से एकात्म रूप में आगे विकास करेगा, राष्ट्र भी उसी दिशा में ही उन्मुख होगा। वर्तमान में राष्ट्रभाव को लेकर बहुत सारी विचारधारायें मौजूद है तब ये आवश्यक हो जाता है कि दार्शनिक दृष्टि से राष्ट्र के स्वरूप की चर्चा की जाये। इस शोध पत्र में राष्ट्र का स्वरूप क्या हो सकता है जिससे समग्र सृष्टि का विकास हो सके के क्षेत्र की चर्चा की जायेगी।
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Last modified: 2021-06-24 00:57:57