हिंदी की दलित कविता में अभिव्यक्त चेतना और नए सौंदर्यशास्त्र का सृजन
Journal: Praxis International Journal of Social Science and Literature (Vol.3, No. 11)Publication Date: 2020-11-24
Authors : अशोक कुमार यादव;
Page : 85-88
Keywords : राम; कृष्ण; एकलव्य; शम्बूक जैसे मिथकीय; पौराणिक पात्रों; डॉ.अम्बेडकर आदि का चिंतन।;
Abstract
हिंदी साहित्य में सन 1990 के बाद जब साहित्य और समाज में अस्मिता मूलक विमर्शों का उभार हुआ तो दलित साहित्य भी कविता, कहानी, उपन्यास, आत्मकथा आदि अनेक रूप में दलित समाज के सवालों को लेकर हमारे सामने आया। इन सवालों के ऐतिहासिक और सामाजिक पहलू भारतीय संस्कृति की आभा पर सवाल खड़ा करते हैं। जैसे शम्बूक, एकलव्य की कहानी। धर्म, सभ्यता और परम्परा के नाम पर दलित समाज को मूलभूत मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया। महात्मा फुले, डॉ.अम्बेडकर, पेरियार आदि के प्रयासों से इस समाज में जागरूकता आई। फलस्वरूप दलित चिंतकों ने इस समाज के अधिकारों, सवालों को उठाना शुरू किया। हिंदी के दलित कवियों ने भी दलित समाज के सवालों, अधिकारों को उठाना शुरू किया, जिससे साहित्य और समाज को देखने, समझने का नजरिया बदलने लगा। इस तरह साहित्यिक प्रतिमान और सामाजिक संरचनाएं काट-छाँट करती हुयी समावेशिता की राह पर चल पड़ी हैं।
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Last modified: 2021-06-24 01:04:36